मंगलवार, 27 सितंबर 2016

सरकार द्वारा जी.एम. सरसों को बढ़ावा देने के विरू( शहद उद्योग द्वारा विरोध्



सरकार द्वारा जी.एम. सरसों को बढ़ावा देने के विरू( शहद उद्योग द्वारा विरोध्

शहद निर्यातकों व मध्ुमक्खी पालकों के अनुसार लाखों की आजीविका खतरें में


सरसों की जी.एम. पफसल की व्यापारी खेती को बढ़ावा देने के सरकारी प्रस्ताव के गंभीर खतरों से आशंकित मध्ुमक्खी पालकों एवं शहद निर्यातकों के द्वारा विरोध प्रदर्शन दर्ज कराने का की योजना उतर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चित बंगाल, जम्मू काश्मीर एवं महाराष्ट्र के मध्ुमक्खी पालकों एवं शहद निर्यातको ने 28 सितम्बर 2016 को 11.00 बजे से राजधनी के जन्तर मंतर पर ध्रना देने का निश्चय किया है। प्रतिनिध्यिों ने ध्रना प्रदर्शन के कार्यक्रम की घोषणा करते हुए बताया कि जी.एम. सरसों को प्रस्तावित करना व बढ़ावा देना सरकार का कदम बु(िमानीपूर्ण नहीं होगा। इससें स्वयं सरसों को उत्पादन विपरीत एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हरियाणा के मध्ुपालक श्री सुभाष कामबोज एवं रामकिशोर यादव ने बल देकर कहा की जब मध्ुमक्खियों पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा तो केवल शहद उद्योग नहीं बल्कि सरसों के पफसल के साथ-साथ बहुत सी अनेक क्षाद्य पफसलों के उत्पादन परागण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने के कारण उपज पर प्रभावित होगी। उन्होंने राज्य सरकारों से जी.एम.पफसलों की खेती की स्वीकृति में हस्ताक्षेप करें।

मध्ुमक्खी पालक एवं नेशनल वी बोर्ड के कार्यकारिणी समिति के सदस्य श्री देवरस शर्मा ने बताया कि भारतीय शहद उद्योग एवं मध्ुमक्खी पालन कार्यक्रम से 5 लाख परिवारा जुड़े हैं और लगभग 10 लाख उद्यमियों की आजीविका इस पर आधरित है। हम भारत में लगभग 90 हजार टन शहद का प्रतिवर्ष उत्पादन करते हैं जिसमें से 35 हजार टन से अध्कि शहद निर्यात होता है और उससे 750 करोड़ रूपए से अध्कि मूल्य की विदेशी मुद्रा देश कमाता है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लगभग 7 प्रतिशत शहद का उत्पाद सरसों से उत्पादित होता है। सरसों का क्षेत्रापफल जी.एम सरसों की खेती में बदल जाने पर इस उद्योग के सामने गम्भीर संकट आ जायेगा।

डाॅ0 आई.एस. हूडा सेवानिवृत वैज्ञानिक तथा एक किसान ने कहा मध्ुमक्खी पालन उद्योग का यह सरकारी निर्णय सरसों एवं मध्ुमक्खी उद्योग पर अल्प एवं दीर्घ अवध्कि विपरीत प्रभाव देना वाला है। जिस प्रकार बी.टी-कपास की खेती से उस क्षेत्रा की मध्ुमक्खी पालकों को ही नुकसान नहीं उठाना पड़ा। बल्कि क्षेत्रा की अन्य खरीपफ पफसलों की उत्पादकता कुप्रभाव पड़ा। बी.टी-काॅटन आने के बाद आरम्भ में शहद का उत्पादन कम हुआ और ध्ीरे-ध्ीरे मध्ुमक्ख्यिों की संख्या घटत गई। उन्होंने कहा कि हम सरकार से निवेदन करते हैं कि वह बी.टी.-कपास के आरम्भ होने के बाद किस प्रकार किसान और मध्ुमक्खी पालन को नुकसान उठाने पड़े है, इसका वैज्ञानिक आंकलन कराये।

गत 35 वर्षों से मध्ुक्खी पालन की शोध् एवं विकास कार्यक्रमों से जुड़े हुए सेवानिवृत कृषि विशेषज्ञ श्री योगेश्वर सिंह ने बताया कि इस सम्बन्ध् में जी.एम सरसों की खेती से गैर सुरक्षा एवं किए गए परीक्षणों के परिणामों को प्रकाशित एवं जनसधरण तथा संबंध्ति विशेषज्ञों के साथ साझा नहीं किया गया है और इस संबंध् में पारदर्शिता का नितांत अभाव है। हमारा निवेदन है कि हमारे वैज्ञानिकों, भारतीय कृषि अनुसंधन परिषद के विशेषज्ञों तथा विश्वविद्यालयों को विशेषज्ञों की देख-रेख में देश भर में सभी पहलूओं पर परीक्षण कराए जाए और परिणामों की व्याख्या और जैव-सुरक्षा संबंध्ति आंकडां़े सामान्य जनपरिदृश्य ;पब्लिक डोमेनद्ध पर लाया जाये। इसके साथ-साथ मध्ुमक्खी पालकों निर्यातकों उद्यमियों और जन सामान्य के 120 दिन का अवसर अपने विचार देने के लिए दिया जाये।

28 सितम्बर 2016 को मध्ुमक्खी पालक एवं किसान जन्तर-मन्तर नई दिल्ली में बड़ी संख्या में दिल्ली एकत्रा होकर सरकार को अपने प्रदर्शन के माध्यम से यह निवेदन है प्रस्तुत करेंगे कि जी.एम सरसों को किसानों के उपर थोपना एक अवैज्ञानिक, किसान एवं मध्ुमक्खी पालन विरोध्ी कदम होगा। श्री योगेश्वर सिंह ने बताया कि वर्तमान में सुस्पष्ट जानकारी यह है कि पर्याप्त परीक्षण नहीं किए गए हैं। शाकनाशी-कीटनाशी सहमक्षमता वाली किसी भी पफसल का मध्ुमक्खियों और परागणकर्ता कीड़ों के उपद दुश्प्रभाव होना बहुत स्वभाविक है। इस तथ्य पर बहुत से वैज्ञानिक अध्ययन उपलब्ध् है।

मध्ुमक्खी पालन से केवल मध्ुमक्खी पालक ही लाभावन्ति नहीं होते बल्कि अपने प्रभावी परागण के कार्य से सरसों के उत्पादन को 30 से 40 प्रतिशत तक का लाभ होता है। प्रकृति में वानस्पतिक संतुलन बनाए रखने और खाद्यान उत्पादन वृ(ि में मध्ुमक्खियों को बड़ा योगदान होता है। हमारा निश्चित मानना है कि बीज के महंगे निवेश पर किसान का व्यय बढ़ाने की उपेक्षा यदि मध्ुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जाये तो किसान का अतिरिक्त खर्चा हुए बिना तिलहन ही नहीं वरन दलहन तथा अन्य पफसलों को उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है।

प्रवक्ताओं ने कहा कि सरकार का ध्यान इन तथ्यों की आर्कषित करने के लिए और यह निवेदन करने के लिए कि व्यवसायिक खेती करने का निर्णय लेने से पहले सभी तथ्यों पर भलीभांति आंकलन कर लिया जाये, 28 सितम्बर 2016 को 11.00 बजे से शांतिपूर्ण ध्रना प्रदर्शन का निर्णय लिया गया।

काॅन्पफेडरेशन आॅपफ बी कीपिंग इण्डस्ट्री का ओर से

सुभाष कांबोज 9355665520

योगेश्वर सिंह 9359933807

देवव्रत शर्मा 9868119855

पुष्पेन्द्र सिंह भण्डारी 9982628636

डाॅ0 आई.एस. हूडा 9313814268

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