शनिवार, 26 नवंबर 2011

धोरो से गायब हुआ रोहिड़ा!

धोरो से गायब हुआ रोहिड़ा!

अब वे दिन बीत गए जब पुष्पों से लकदक रोहिड़े के पेड़ दूर से ही लोगो को आकर्षित कर लेते थे। इक्का-दुक्का स्थानो को छोड़ कर यह अनमोल व अत्यंत उपयोगी माना जाने वाला पेड़ अब आसानी से देखने को नहीं मिलता। राज्य पुष्प, राजस्थान का सागवान एवं मरूप्रदेश की शान कहलाने वाला रोहिड़ा अब अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। उपयोगी होने के बावजूद रोहिड़ा की प्रजाति पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जनजागृति एवं संरक्षण के अभाव में प्रकृति की इस धरोहर की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

अनकूल परिस्थितियां
पीत पुष्पो से श्ृंगारित रहने वाले रोहिड़े के पेड़ के विकसित होने के लिए मरूप्रदेश मे अनुकूल परिस्थितियां हैं। यह पौधा यहां की भौगालिक परिस्थितियो मे शीघ्रता से फलता-फूलता है। इसकी लकड़ी मे कीड़ा नहीं लगता है। मारवाड़ का टीक कहलाने वाला रोहिड़ा का पौधा बेहद कीमती व उपयोगी है। मध्यम आकार का यह मरूस्थलीय पौधा राजस्थान के अलावा हरियाणा व पंजाब के कुछ स्थानो पर भी पाया जाता है।

उपयोग यह भी
रोहिड़े की लकड़ी बेहद सख्त एवं हल्के भूरे रंग की होती है। लकड़ी की मजबूती के कारण इसका उपयोग फर्नीचर बनाने में किया जाता है, जबकि वर्षो से हवेलियो मे इस पौधे की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। बहुगुणी होने के कारण इसे राजस्थान का सागवान भी कहा जाता है।

संकट मे अस्तित्व
उपयोगी होने के बावजूद इस महत्वपूर्ण पौधे की उपेक्षा का सिलसिला जारी है।
सरकारी संरक्षण के अभाव में चमक खो रहा रोहिड़ा।
बारिश की कमी से रोहिड़े के पनपने मे हो रही बाधा।
सरकारी तंत्र की ओर से नहीं ली जा रही सुध।
इमारती लकड़ी के लिए लगातार हो रही कटाई।

इसलिए चिंतित हैं कृषि वैज्ञानिक
रोहिड़े का वानस्पतिक नाम टीकोमेला अंडुलेटा है। इस बहुवर्षीय पौधे मे फूल खिलने का समय दिसंबर से फरवरी माह तक है। कृषि तकनीकी सहायक राजवीरसिंह का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से इस बहुपयोगी पौधे की घटती संख्या चिंता का विषय है। रोहिड़े की संख्या मे हो रही कमी का मुख्य कारण बढ़ता जनसंख्या दबाव, खेती योग्य भूमि बनाने के लिए पेड़ों की कटाई और इमारती लकड़ी की चाह है।

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